एक पिता ओर
उनकी तीन बेटिया
अगर आप सोच रहे कि
ये किस तरह कि लिखावट है और मै किस लिए लिख रही हु ये सब , आप पहले इशे पूरा पढ़े फिर
आप भी सोचिये, ये कोई कहानी नही है बल्कि सच
है और सबको सच सुनने और सुनाने में दिकत होती ही है।
एक पिता ओर माँ की
सूझ बुझ : यही सच है कि हर माँ यही सोचती है कि पहली बेटी का सादी तो मै अपनी जेवर
देकर कर दूंगी कोई चिंता की बिसई नहीं है ये सायद हर घर की कहानी है। अब समय ऐसा आ गया है कि अपनी पुश्तैनी जेवर भी अपने
घर आने वाली नयी बहु / दुल्हन को नहीं दिया जाता और ना ही रखा जाता है।
उश पिता का एक छोटी
सी गला का दुकान था थोड़ी थोड़ी पैसा जमा कर रखते थे कि दूसरी बेटी का भी सादी करना है पूरा जीवन अब तो ऐसेही ब्यतीत करना
पड़ेगा वो इश बात को समझ गए थे वो जानते थे की उनकी आर्थिक ब्यवस्था इतनी अछि नही है
ओर योग्य नही है कि किसी अछे पढ़े लिखे घरो में अपनी बेटी की रिश्ते की बात कर सके। मन में ही यह
सोच आ जाती थी कि कैसे मै उन लोगो का मांग को पूरा कर सकूंगा।
जब पहली बेटी की सादी
हुई तो घर कि परिस्थिति देखने लायक थी सादी भी हुई तो एक मिडिल क्लास फैमिली में जिनके
घरो में लड़को की कमी नही थी , सभी भाई अछे खासे कमा रहे थे उश्के बावजूद भी उनलोगो
ने मांगने में कोई कसर नही छोड़ी। उनलोगो ने
लड़की के पिता के आर्थिक परिस्थितयो को देखते हुए वो सब कुछ मांग लिया पर एक छन के लिए
ये भी नही सोचा की उष पिता के ओर भी बेटिया है वो पिता जीवन ऐसे ही ब्यतीत कर देगा। जब यह सब देखने ओर सुनने मिलता है तो बहुत दुःख
होता है यह सब बिचार किसी के मन मे ही नही आता थोड़ा सा भी, शर्म आती है।
अब उष बड़ी बेटी कि
सादी के बाद का समय , जितनी जमा पूंजी थी वो भी खत्म हो गया , जो पैसे दूसरे ब्यपारिओ को देने के लिए रखा था वो भी सादी में खर्च हो गया,
वो पिता सादी के वक़्त ये नही सोचा कि किया होगा बाद में , अपनी इज्जत की बात थी बेटी
की सादी की बात थी वो पिता भी किया करता, ओर यह भी सच है कुछ रिश्तेदार लोगो ने भी
मदद की थी परन्तु वो कितना कर सकते थे.
वो समय उश पिता के
लिए बहुत ही कस्ट पूर्ण थी वो यही सोच रहे थे कि किया करे वो, ना पैसा है ना और कुछ। तब छोटी बेटी के मन में कुछ ऐसा आया कि सभी ने सोचा
कि चलो कुछ न कुछ हो जायेगा। सादी के वक़्त
बहुत मेहमानो ने बंद लिफाफे में पैसे और कुछ गिफ्ट दिए थे जो उनकी बड़ी बेटी नहीं ले
गयी। यह एक मदद हो गयी उष पिता के लिए, बस
उष पैसो से उष पिता ने फिर अपना ब्यापार सुरु किया, छोटी बेटिया ट्यूशन देने लग गयी
और फिर से उनकी परिस्थितियों ने रफ़्तार पकड़ ली।
अब वो पिता यह समझ
गए थे की मै अभी अपनी दूसरी बेटी का सादी तो नही कर पायूँगा तुरंत ओर अगले वर्ष तक
भी नहीं कर पायूँगा , जो घर के जेवर थे वो भी चले गए बड़ी बेटी के सादी में , अब हमारे
पास ऐसा कुछ है भी नहीं की मै कुछ नया जेवर बनवा पाँय।
बस जीवन की गाड़ी ऐसेही
चलती रही कुछ दिनों के बाद माँ के मन में ये ख्याल आया की बेटी को तो बिदा भी करना
पड़ता है ओर उश्के लिए भी पैसो कि जरुरत है, जमाई बाबू के घर वालो के लिए कपड़ो का व्यवस्था
करना मिठाई बनवाना , करना तो पड़ेगा ही न ये रश्म है हमारी जाती में वरना लड़के के घर
वाले लोंगो को बुरा लग जायेगा। फिर किया निकालो
अपनी जमा हुई पूंजी को फिर से.
तब तक छोटी बेटीओ का
उम्र भी सादी करने लायक हो गयी थी, उम्र तो बहुत पहले ही हो गयी थी सादी के लिये। परन्तु
परिष्ठ्तिया ऐसी थी कि ठीक समय पर कर पाना मुंकिन नही था।
अब यह जानकर भी हमें
ये खुसी हुई :
जब छोटी बेटी का सादी
का समय आया तो पता नही कैसे किसी लड़के के पिता ने
खुद सामने से यह कहा कि आप से आपकी बेटी चाहिए बस , हम लोगो कि कोई मांग नही
है बस आप अपने तरफ से जो देना चाहे दे दीजियेगा ओर हम बैठा सादी करेंगे मतलब काढ कर
बेटी ले जाना , उश लड़के के पिता ने कहा बस
अपने लोगो को लेकर हमारे यंहा पर आईये ओर अपने समाज के लोगो को जितना ला पाये
लाये जिश्से कि कुछ दहेज़ दान उठ पाये।
अब यह भी सच है जो
थोड़ा अचे बिचार मन में रखता है उनलोगो के साथ अछा ही होता है। उश पिता ने लड़के को देखा, लड़का का ब्यापार था अछे
घर के लोग थे वो लोग भी मिडिल क्लास से थे अछा खासा उन लोगो का ब्यापार चल रहा था। जिस बेटी की सादी होने वाली थी वो ग्रेजुएट थी परन्तु
लड़का पढ़ा लिखा नही था परन्तु बहुत अछा ओर समृद्ध था अपनी अछि सोच से। मन में किसी भी तरह का घमंड या फिर लालच नही था। उष पिता के आँख से आँशु निकल आये। वो कोई अछा कर्म ही होगा जो इश अछे समय को महसूस
करने का मौका मिला।
इश्लीए लोग कहते सब्र
रखिये और अछा बिचार मन में लाईये। बस उश पिता
के छोटी लड़की की सादी दूसरे बर्ष हो गयी। ये
एक चमत्कार नही तो किया है। मै तो आज भी नही
सोच पायी की ये अचानक से कैसे हो गया। इश तरह के भी लोग है हमारे जाती में।
जब तीसरी बेटी का समय
आया तो बहुत समय हो चूका था उनकी तीसरी बेटी का उम्र सायद २९ हो गयी थी ओर वो देखने
में बहुत सुन्दर भी थी ऐसा नही की बड़ी बेटिया सुन्दर नही थी सभी बेटिया बहुत सुन्दर
थी। अब सबसे छोटी बेटी जिसे करीब तीन से चार
परिवार वालो ने रिजेक्ट कर दिया था कारन एक ही था उष पिता के पास देने के लिए कुछ था
ही नहीं उतना। समाज में हमारी जाती में सब
यही सोच रहे थे की बड़ी बेटियो को अछे घरो में दे दिया ओर उनलोगो की मांग भी पूरी की
गई होगी।
यही होता है हमारे
जाती में अभी भी ऐसे कुछ मानशिक बूढी जीबी जीवन जी रहे है कि उनलोगो का कभी भी सोच
बदल पाना नही के बराबर है।
अब उनकी तीसरी बेटी
के लिए बहुत सारे घरो में रिश्ता भेजी गयी परन्तु कंही पर भी ठीक नही हो रहा था ३ साल
गुजर गया दूसरी बेटी का बिवाह किये हुए। तीसरी बेटी का उम्र भी निकलता जा रहा था।
आप माने या ना माने
, एक परिवार उशी सहर में ऐसा भी था जिससे उष पिता के साथ व्यापर चलता था उशने उष पिता
को कहा की मेरे बड़े भाई के लड़के के लिए लड़की
धुंध रहे है अगर आपके नजर में कोई हो तो बताइएगा। उष पिता ने जानकारी ली उश्के बड़े
भाई के लड़के के बारे में वो किसी ओर सहर में रहता था अछे खासे लोग थे समृद्ध थे। अब उश पिता ने कहा कि मेरी छोटी बेटी से आपके बड़े
भाई के लड़के से बात आगे करने के लिए सोचिये अगर आपको समझ में आये, बस उष लड़के के परिवार
वाले देखने आये लड़की पसंद आई ओर बात आगे बढ़ी, अब इनकी छोटी लड़की के बिवाह के समय उन
परिवार वालो ने कहा कि हमारी कोई मांग नही है।
दरअसल वो लोग जानते थे उष पिता के आर्थिक ब्य्वश्था के बारे में। उन लोगो को पता था कि वो कुछ भी देने में समर्थ
नही है।
इश्लीए उष लड़के के
घर वालो ने कहा की आप से कोई मांग नही है हमें लड़की बहुत ही पसंद आयी है बस आप सादी
की तयारी करिये।
आप सब भी सोच रहे होंगे
की ये बस एक कहानी है , आप गलत सोच रहे है
यह सच्ची कहानी है की आज भी मै सोचती हु कि यह कैसे हो गया। या एक करिश्मा ही है मेरे लिए। देखते देखते तीनो लड़कियों की सादी हो गयी।
ओर आज भी वो सभी खुस
है अपने जीवन में अपने परोवारो के साथ। पिताजी
की उम्र अब बहुत हो चुकी है पर जीवन अब सांत ओर सुखमय है पर तकलीफ भी है दोनों माता
पिता के बृद्धा व्वस्था में हमेशा के लिए कोई है नही सेवा करने के लिए परन्तु कुछ हद
तक अपने ही परिवार के लोग सेवा कर रहे है।
आप अगर पूरा पढ़ चुके
है तो कृपया अपनी ओर अपने परिवार के बिचारो को अचे बिचार में बदलने की कोशिस करे। आप सायद ही उम्र में बहुत छोटे होंगे परन्तु ऐसा
नही की आप अपने सोच बदल न पाये। आप अगर अछा सोचेंगे तब ही अछा कर्म कर पाएंगे।
अगर हम सब हिन्दू है
ओर भगवन की पूजा करने में बिस्वास रखते है तो ये भी सच है कि कुछ ऐसी शक्ति है ईश बातावरण
में जो छुप कर काम करती है ओर हमें आगे बढ़ने के लिए हिम्मत देती है।
आप एक ही सुच ओर अछा
बिचार मन में लाकर तो देखिये।
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